13 फरवरी 2025 को संसद में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की रिपोर्ट पेश की गई, जिसके बाद दोनों सदनों में तीखी बहस और हंगामा हुआ। विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि रिपोर्ट में उनकी असहमति के नोट्स को शामिल नहीं किया गया है, जिससे उनकी आवाज़ को दबाया गया है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024, भारत सरकार द्वारा वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन के लिए प्रस्तावित एक महत्वपूर्ण विधेयक है। यह विधेयक 8 अगस्त 2024 को लोकसभा में पेश किया गया था।
मुख्य प्रावधान:
- मुस्लिम वक्फ अधिनियम, 1923 का निरसन: विधेयक में 1923 के मुस्लिम वक्फ अधिनियम को रद्द करने का प्रस्ताव है, जो अब पुराना हो चुका है।
- वक्फ अधिनियम, 1995 में संशोधन: विधेयक में 1995 के वक्फ अधिनियम में 44 संशोधन प्रस्तावित हैं, जिनका उद्देश्य वक्फ बोर्डों की पारदर्शिता और जिम्मेदारी बढ़ाना है।
- वक्फ बोर्ड की संरचना में बदलाव: प्रस्तावित संशोधनों में वक्फ बोर्ड में दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान है, जिससे बोर्ड की संरचना में विविधता आएगी।
- वक्फ संपत्तियों की पहचान और प्रबंधन: विधेयक में वक्फ संपत्तियों की पहचान, पंजीकरण और प्रबंधन की प्रक्रियाओं में सुधार के लिए प्रावधान शामिल हैं, जिससे वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग को रोका जा सके।
संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की भूमिका:
विधेयक को समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया था। जेपीसी ने सत्तारूढ़ एनडीए द्वारा प्रस्तावित 14 संशोधनों को मंजूरी दी, जबकि विपक्ष द्वारा प्रस्तावित 44 संशोधनों को खारिज कर दिया।
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 का उद्देश्य वक्फ बोर्डों के कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना, वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार करना, और वक्फ अधिनियम को वर्तमान समय के अनुरूप बनाना है। हालांकि, विधेयक के कुछ प्रावधानों को लेकर राजनीतिक दलों के बीच मतभेद हैं, जो संसद में चर्चा का विषय बने हुए हैं।
संयुक्त संसदीय समिति भारतीय संसद की एक महत्वपूर्ण तदर्थ समिति है, जो विशेष मुद्दों की गहन जाँच और विश्लेषण के लिए गठित की जाती है। इसकी सिफारिशें सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं होतीं, लेकिन वे नीति निर्माण और विधायी प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee – JPC) भारतीय संसद द्वारा गठित एक तदर्थ (अस्थायी) समिति है, जिसका उद्देश्य किसी विशिष्ट मुद्दे, विधेयक या रिपोर्ट की गहन जाँच और विश्लेषण करना होता है। इस समिति में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों के सदस्य शामिल होते हैं, जो सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
गठन और संरचना:
JPC का गठन संसद में एक प्रस्ताव पारित करके किया जाता है, जिसे दूसरे सदन द्वारा समर्थन दिया जाता है। समिति के सदस्यों की संख्या निर्धारित नहीं होती, लेकिन इसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के सदस्यों को उनके संसद में प्रतिनिधित्व के अनुपात के आधार पर शामिल किया जाता है। आमतौर पर, लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों से दोगुनी होती है। समिति की अध्यक्षता लोकसभा के एक सदस्य द्वारा की जाती है, जिसे लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है।
कार्य और अधिकार:
JPC के पास निम्नलिखित कार्य और अधिकार होते हैं:
- साक्ष्य एकत्र करना: समिति मौखिक या लिखित रूप में साक्ष्य एकत्र कर सकती है और संबंधित दस्तावेजों की मांग कर सकती है।
- व्यक्तियों और संस्थाओं को बुलाना: समिति किसी भी व्यक्ति, संस्था या पक्ष को साक्ष्य देने के लिए बुला सकती है। यदि वे उपस्थित नहीं होते, तो इसे संसद की अवमानना माना जाता है।
- गोपनीयता: जनहित के मामलों को छोड़कर, समिति की कार्यवाही और निष्कर्ष गोपनीय रखे जाते हैं।
- रिपोर्ट प्रस्तुत करना: समिति अपनी जाँच पूरी करने के बाद संसद में रिपोर्ट प्रस्तुत करती है।
समिति की सिफारिशें सलाहकारी होती हैं और सरकार के लिए उनका पालन करना अनिवार्य नहीं होता। हालांकि, प्रवर समितियों और JPC के सुझाव, जिनमें सत्तारूढ़ दल के सांसदों का बहुमत होता है, मुख्यतः स्वीकार किए जाते हैं।

विपक्ष की आपत्ति:
राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा, “जेपीसी की यह रिपोर्ट फर्जी है। इसमें विपक्ष की असहमतियों को डिलीट कर दिया गया। यह असंवैधानिक है।” आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने भी अपनी नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा, “हमने अपना पक्ष रखा। इससे सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन कूड़ेदान में कैसे डाल सकते हैं।”
सरकार की प्रतिक्रिया:
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, “विपक्ष के सदस्य संसदीय कार्य प्रणाली के तहत जो कुछ भी जोड़ना चाहते हैं, वो जोड़ सकते हैं। उनकी पार्टी को इसमें कोई भी आपत्ति नहीं है।”
जेपीसी अध्यक्ष का बयान:
जेपीसी के अध्यक्ष और भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने बताया कि समिति ने छह महीने तक देशभर में विचार-विमर्श के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने कहा, “हमने 14 खंडों में 25 संशोधनों को अपनाया है।”
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर जेपीसी की रिपोर्ट संसद में पेश होने के बाद उत्पन्न विवाद ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। विपक्ष और सरकार के बीच इस मुद्दे पर मतभेद स्पष्ट हैं, जो आने वाले दिनों में और गहराने की संभावना है।
वक्फ (Waqf): एक इस्लामी अवधारणा है, जिसके तहत कोई मुस्लिम व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक, पवित्र या परोपकारी उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से अल्लाह के नाम समर्पित करता है। इस संपत्ति का उपयोग मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, ईदगाह, मजार आदि के निर्माण और देखभाल के लिए किया जाता है। वक्फ की गई संपत्ति को बेचा, स्थानांतरित या किसी अन्य उद्देश्य के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता।
एक बार वक्फ घोषित होने के बाद, संपत्ति का स्वामित्व अल्लाह को स्थानांतरित हो जाता है, और यह अपरिवर्तनीय हो जाती है। इन संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड या नियुक्त मुतवल्ली द्वारा किया जाता है।

वक्फ बोर्ड:
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और देखभाल के लिए प्रत्येक राज्य में वक्फ बोर्ड का गठन किया गया है। वक्फ बोर्ड का एक सर्वेयर होता है, जो यह निर्धारित करता है कि कौन सी संपत्ति वक्फ की है और कौन सी नहीं। वक्फ बोर्ड का मुख्य कार्य वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा, पुनर्प्राप्ति, अतिक्रमण हटाना, और इन संपत्तियों से उत्पन्न आय का उचित उपयोग सुनिश्चित करना है।
राज्य वक्फ बोर्ड राज्य स्तर पर वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होते हैं। इन बोर्डों में सदस्यों की नियुक्ति और संरचना वक्फ अधिनियम के तहत निर्धारित की जाती है। हाल ही में प्रस्तावित वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 में वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है, जिससे इनकी संरचना में बदलाव होगा।
वक्फ अधिनियम:
भारत में वक्फ से संबंधित मामलों को नियंत्रित करने के लिए वक्फ अधिनियम, 1995 लागू किया गया था, जिसे बाद में 2013 में संशोधित किया गया। इस अधिनियम के तहत वक्फ बोर्डों को संपत्तियों के अधिग्रहण, प्रबंधन और विवादों के समाधान के लिए विस्तृत अधिकार प्रदान किए गए हैं।
भारत में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और प्रशासन के लिए वक्फ अधिनियम, 1995 लागू किया गया था, जिसे 2013 में संशोधित किया गया। इस अधिनियम के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना की गई, जो वक्फ संपत्तियों की देखरेख और प्रबंधन के लिए जिम्मेदार हैं।
धार्मिक संपत्ति:
वक्फ संपत्तियां मुख्यतः धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए समर्पित होती हैं, जैसे मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, ईदगाह आदि। इन संपत्तियों का उपयोग संबंधित समुदाय की धार्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
वक्फ प्रणाली इस्लामी समाज में धार्मिक और परोपकारी कार्यों के लिए संपत्तियों के समर्पण की एक महत्वपूर्ण प्रथा है। वक्फ अधिनियम और वक्फ बोर्ड इन संपत्तियों के प्रबंधन और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे मुस्लिम समुदाय की धार्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।