उत्तराखंड का वह दिव्य मंदिर जहां वचन निभाने स्वयं आते हैं भगवान शिव, यहीं से हुई थी 52 शक्तिपीठों की उत्पत्ति

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Uttarakhand News: सावन के दूसरे सोमवार के दिन उत्तराखंड के शिव मंदिरों भगवान भोलेनाथ के सैलाब उमड़ पड़ा. भक्तों ने कतारों में लगकर भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया.

देवभूमि उत्तराखंड में सावन के दूसरे सोमवार पर शिव मंदिरों में उमड़ा श्रद्धालुओं का सैलाब

देवभूमि उत्तराखंड में सावन के पावन महीने का दूसरा सोमवार भारी बारिश के बावजूद शिवभक्तों की आस्था के रंग में रंगा नजर आया। सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालु विभिन्न शिवालयों में जलाभिषेक के लिए पहुंचे और ‘हर-हर महादेव’ के जयकारों से मंदिर प्रांगण गूंज उठे।

सावन का महीना भगवान शिव की उपासना के लिए विशेष माना जाता है। इस अवसर पर उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिव मंदिरों — जैसे कांखल महादेव, केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ आदि — में भक्तों की भीड़ देखने को मिली।

कनखल क्षेत्र की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता भी इस मौके पर विशेष रही। मान्यता है कि यह वही पुण्यभूमि है जहां प्राचीन काल में ब्रह्मा पुत्र राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया था। इसी स्थान पर माता सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान किए जाने पर अग्नि में कूदकर आत्मबलिदान दिया था।

ऐसी मान्यता है कि उस समय यज्ञ स्थल पर भगवान विष्णु, ब्रह्मा, 84 हजार ऋषि और असंख्य देवता उपस्थित हुए थे। कनखल की यह भूमि तभी से अत्यंत पवित्र मानी जाती है और आज भी श्रद्धालु यहां आकर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

सावन में दक्षेश्वर धाम आते हैं भगवान शिव, निभाते हैं अपना वचन

उत्तराखंड के कनखल स्थित दक्षेश्वर महादेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि सावन के महीने में स्वयं भगवान शिव यहां वचन निभाने आते हैं। यही वह पुण्यभूमि है जहां उन्होंने दक्ष पुत्री सती से विवाह किया था। उस समय भगवान शिव यक्षों, गंधर्वों और किन्नरों के साथ बारात लेकर आए थे।

पौराणिक मान्यता के अनुसार, सावन में भगवान शिव “दक्षेश्वर” रूप में इस धरती पर आते हैं और अपने उस वचन को निभाते हैं, जो उन्होंने सती से किया था। यह वही कनखल की भूमि है, जहां से भारत के 52 शक्तिपीठों की उत्पत्ति मानी जाती है।

कहा जाता है कि यहीं ऋषियों ने पहली बार स्वर्ग से धरती पर यज्ञाग्नि उत्पन्न की थी। यह क्षेत्र देवी भगवती की मायानगरी भी कहलाती है, जहां शिव का आध्यात्मिक केंद्र आकाश में है और महामाया का शक्ति केंद्र पाताल में स्थित है — इन्हीं दो शक्तियों की ऊर्जा से ब्रह्मांड संचालित होता है।

पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख है कि शिव ने सती से विवाह के बाद पिता दक्ष के जीवित रहते इस भूमि पर दोबारा कदम नहीं रखा। लेकिन अपनी पत्नी सती से किया वचन निभाने के लिए हर सावन, विशेष रूप से सोमवार के दिन, भगवान शिव अदृश्य रूप में यहां आते हैं। यह स्थान इसलिए भी अद्वितीय है क्योंकि ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र, नारद समेत 84,000 ऋषियों ने यहीं यज्ञ का आयोजन किया था।

कनखल से हुई थी 52 शक्तिपीठों की उत्पत्ति, माया नगरी की आध्यात्मिक शक्ति आज भी जीवंत

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित शीतला माता मंदिर वह पावन स्थान है जहाँ मां सती का जन्म हुआ था। यहीं पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में अपमान से आहत होकर माता सती ने यज्ञ कुंड में आत्मदाह किया था। उनकी पार्थिव देह को भगवान शिव के गण वीरभद्र ने जिस स्थान पर रखा, वही आज माया देवी मंदिर कहलाता है।

कहा जाता है कि यहीं से भारत के 52 शक्तिपीठों की उत्पत्ति हुई। ये शक्तिपीठ माता सती के अंगों के विभिन्न स्थानों पर गिरने से बने थे, और कनखल को इनका आदि स्थल माना जाता है।

शक्ति के पांच ज्योतिर्धाम — शीतला माता मंदिर, सती कुंड, माया देवी मंदिर, चंडी देवी मंदिर और मनसा देवी मंदिर — मिलकर एक शक्तिपुंज क्षेत्र का निर्माण करते हैं। इनका आध्यात्मिक केंद्र माया देवी मंदिर का गर्भगृह है, जिसे “आदि पीठ” कहा जाता है, जिसका केंद्र आकाश तत्व में है।

यह पवित्र क्षेत्र दक्षेश्वर, बिलेश्वर, नीलकेश्वर, वीरभद्र और नीलकंठ जैसे शिव धामों से घिरा हुआ है। कहा जाता है कि नीलकंठ महादेव से जुड़ा ऊंचा कैलाश ही इस शक्ति मंडल का दिव्य शिखर है — जहां से शिव और शक्ति की अदृश्य ऊर्जा आज भी भक्तों का मार्गदर्शन करती है।

सावन में शिव भक्तों पर बरसती है आशीर्वाद की वर्षा

सावन का पावन महीना शिव भक्ति और श्रद्धा का पर्व होता है। इस दौरान शिव और शक्ति के दसों ज्योतिर्धाम — जैसे दक्षेश्वर, नीलकंठ, माया देवी, चंडी देवी, मनसा देवी आदि — से कांवड़ भरने आए श्रद्धालुओं पर कृपा वर्षा होती है।

मान्यता है कि जब ये सभी पवित्र स्थलों की अनुकंपा कांवड़ियों पर एक साथ होती है, तभी उनकी गंगा यात्रा सफलतापूर्वक पूरी होती है और वे अपने अभीष्ट शिवालयों तक पवित्र जल चढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त करते हैं।

सावन के हर सोमवार को इन तीर्थस्थलों पर भक्तों की आस्था का सैलाब उमड़ता है और वातावरण हर हर महादेव के जयघोष से गूंज उठता है।

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